पौष माह की अष्टमी तिथि को धनु संक्रांति मनाई जाएगी। धनु संक्रांति को हेमंत ऋतु के आरंभ होने पर मनाया जाता है। धनु संक्रांति का अर्थ है कि सूर्यदेव का धनु राशि में प्रवेश करना। जब सूर्यदेव धनु राशि में प्रवेश करते हैं तब खरमास जिसे मलमास भी कहा जाता है प्रारंभ होता है। सूर्यदेव के धनु राशि में होने पर इस एक माह के अंतराल में मांगलिक या शुभ कार्य करने की मनाही होती है। मान्यता है कि धनु संक्रांति के दिन सूर्यदेव की विधि विधान से पूजा करने से भविष्य सूर्य की भांति चमक उठता है।
धनु संक्रांति के दिन सूर्यदेव की उपासना करने से मनुष्य के जीवन और व्यक्तित्व में तेज का आगमन होता है। संक्रांति के दिन दान पुण्य का विशेष महत्व है। इस दिन जरूरतमंदों को दान अवश्य दें। इस दिन से खरमास यानी मलमास शुरू हो जाते हैं। इसलिए इस दिन से एक माह के लिए सभी मांगलिक कार्यक्रमों पर विराम लग जाता है। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार, धनु संक्रांति पर भगवान सूर्यदेव की विधिवत उपासना करने से मनुष्य को पापों से मुक्ति मिलती है। इस दिन सूर्यदेव के साथ भगवान श्री हरि विष्णु, भगवान जगन्नाथ और भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। धनु संक्रांति के दिन सूर्यदेव के बीज मंत्र व गायत्री मंत्र का जाप अवश्य करें। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने से पापों से मुक्ति मिलती है। धनु संक्रांति काल में भगवान सूर्यदेव और भगवान श्री हरि विष्णु की उपासना करने से आरोग्य का वरदान प्राप्त होता है और जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन होता है। इस काल में भगवान सत्यनारायण की कथा सुनना, शिव चालीसा का पाठ करने से जीवन में सुख-शांति बनी रहती है। धनु संक्रांति के दिन गंगा-यमुना में स्नान का विशेष महत्व है। धनु संक्रांति के दिन नदी किनारे जाकर सूर्यदेव को अर्घ्य देने से मन की शुद्धि होती है। बुद्धि और विवेक की प्राप्ति होती है। इस दिन भगवान को मीठे पकवानों का भोग लगाएं।
इस आलेख में दी गईं जानकारियों पर हम यह दावा नहीं करते कि यह पूर्णतया सत्य एवं सटीक हैं। इन्हें अपनाने से पहले संबंधित क्षेत्र के विशेष की सलाह जरूर लें।