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इस मास में सूर्यदेव की गति हो जाती है मंद, पूजा पाठ से मिलता है शुभ फल

जिस तरह चातुर्मास में शुभ कार्य नहीं किए जाते, उसी तरह खरमास में भी कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित होता है। खरमास में पूजा-पाठ, दान-पुण्य का विशेष महत्व है। खरमास में पूजा-पाठ और दान-पुण्य करने से सभी परेशानियों से छुटकारा मिलता है। जीवन में सुख-शांति आती है। 

संस्कृत में खर का अर्थ होता है गधा और मास का अर्थ है महीना। पौराणिक कथाओं के अनुसार, एकबार सूर्यदेव अपने सात घोड़ों के रथ में सवार होकर ब्रह्मांड की परिक्रमा कर रहे थे। परिक्रमा के दौरान सूर्यदेव को कहीं भी रुकना नहीं था। वह कहीं भी रुक जाते तो पूरा जनजीवन रुक जाता। घोड़े लगातार चलते रहे और इस वजह से उनको प्यास लग आई। वह थककर तालाब के किनारे रुक गए। तालाब किनारे उन्होंने घोड़ों को पानी पिलाया और उनको तालाब किनारे दो गधे खड़े नजर आए। उन्होंने घोड़ों की जगह खरों को रथ से जोड़ दिया और घोड़ों को विश्राम के लिए छोड़ दिया। खरों की वजह से रथ की गति काफी धीमी हो गई। जैसे-तैसे कर एक माह का समय पूरा हुआ तब सूर्यदेव ने विश्राम कर रहे घोड़ों को रथ में लगा दिया और खरों का निकाल दिया। इस तरह हर साल यह क्रम चलता रहता है। खरमास में सूर्यदेव की पूजा करना और आदित्य ह्रदय स्त्रोत का पाठ करना शुभ माना जाता है। खरमास में ईष्ट देव की पूजा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। जरूरतमदों की सहायता करने से देवी-देवता प्रसन्न होते हैं। खरमास में मांगलिक कार्यक्रम नहीं किए जाते हैं। इस माह में नामकरण, यज्ञोपवीत, विवाह और कोई भी धार्मिक संस्कार नहीं होता है। खरमास में जमीन पर शयन करना चाहिए। खरमास में पत्तल में भोजन करना शुभ माना गया है। खरमास में भगवान श्री हरि की पूजा अत्यंत लाभकारी है। खरमास में जौं, तिल, जीरा, सेंधा नमक, मूंग दाल, सुपारी आदि नहीं खाना चाहिए। इस माह तांबे के बर्तन में रखे भोजन या पानी का सेवन नहीं करना चाहिए। 

इस आलेख में दी गईं जानकारियों पर हम यह दावा नहीं करते कि यह पूर्णतया सत्य एवं सटीक हैं। इन्हें अपनाने से पहले संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।