उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाए। खुद को कमजोर समझना सबसे बड़ा पाप है। सत्य को हज़ार तरीकों से बताया जा सकता है, फिर भी हर एक सत्य ही होगा। बाहरी स्वभाव केवल अंदरूनी स्वभाव का बड़ा रूप हैं। दिल और दिमाग के टकराव में दिल की सुनो। किसी दिन, जब आपके सामने कोई समस्या ना आए आप सुनिश्चित हो सकते हैं कि आप गलत मार्ग पर चल रहे हैं। इन विचारों से दुनिया को राह दिखाने वाले स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को हुआ था। उनके जन्मदिन को देश राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप मनाता है। जयंती के अवसर पर आइए जानते हैं स्वामी विवेकानंद से जुड़े कुछ रोचक तथ्य।
माता द्वारा देखे गए स्वपन के आधार पर स्वामी विवेकानंद के जन्म के समय उनका नाम वीरेश्वर रखा गया, जबकि उनका आधिकारिक नाम नरेन्द्र नाथ रखा गया। स्वामी जी अपनी मां से बहुत प्रेम करते थे और जीवनपर्यंत उनकी पूजा करते रहे। स्वामी जी जब नरेन्द्र से संन्यासी बने तो उनका नाम स्वामी विविदिशानंद था पर शिकागो जाने से पहले उन्होंने अपना नाम विवेकानंद कर लिया। स्वामी जी के मठ में कोई भी महिला प्रवेश नहीं कर सकती थी, यहां तक कि उनकी माताजी भी नहीं। स्वामी जी जरूरतमंदों की सेवा करने में इतना तल्लीन रहते थे कि वह अपनी सेहत पर ध्यान ही नहीं देते थे। 39 साल के अपने अल्प जीवन में उन्होंने लगभग 31 बीमारियों का सामना किया। स्वामी विवेकानंद को वेद, उपनिषद, भागवत गीता, रामायण, महाभारत और पुराण में काफी रुचि थी। 1881 में पहली बार वह स्वामी रामकृष्ण से मिले थे। तभी से उन्होंने स्वामी रामकृष्ण को अपना गुरु मान लिया। स्वामी रामकृष्ण ने स्वामी विवेकानंद को सिखाया कि इंसानों की सेवा करना भगवान की पूजा करने से भी बढ़कर है। 1888 में स्वामी विवेकानंद ने भारत भ्रमण शुरू किया। पांच साल तक वह पूरे भारत में घूमते रहे। जुलाई 1893 में विवेकानंद शिकागो गए। उस समय वहां विश्व सर्व धर्म सम्मलेन का आयोजन किया गया। 11 सितम्बर 1893 को विश्व धर्म सम्मलेन में उन्होंने हिंदुत्व पर अपना पहला भाषण दिया। अपने भाषण की शुरुआत सिस्टर एंड ब्रदर्स ऑफ़ अमेरिका से की। यह सुनते ही वहां उपस्थित सभी लोगो ने उनके लिए खड़े होकर तालियां बजाईं। उस समय लगभग सात हज़ार लोग वहां एकत्र हुए थे। एक मई 1897 को उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की।