भगवान सूर्य की उपासना के पर्व मकर संक्रांति से कई धार्मिक मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन सूर्यदेव अपने पुत्र शनिदेव के घर एक महीने के लिए जाते हैं। यह दिन पिता-पुत्र के संबंधों में निकटता की शुरुआत के रूप में देखा जाता है। इस तिथि से रात छोटी होने लगती हैं और दिन बड़ा होने लगता है।
कहा जाता है कि मकर संक्रांति के दिन से देवलोक के द्वार खुल जाते हैं। सूर्यदेव के उत्तरायण होने पर शरद ऋतु मंद पड़ने लगती है और बसंत ऋतु का शुभारंभ होने लगता है। मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी राजा भागीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं। इस संक्रांति को सजीव माना गया है। मकर संक्रांति के शुभ मुहूर्त में स्नान, दान का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु ने असुरों का अंत कर युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी। उन्होंने सभी असुरों के सिरों को मंदार पर्वत में दबा दिया था। इसलिए यह दिन नकारात्मकता को खत्म करने का दिन भी माना जाता है। इस पर्व को खिचड़ी पर्व के रूप में मनाया जाता है। पितामह भीष्म को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था। वाणों की शैय्या पर रहने के बावजूद उन्होंने दक्षिणायण में प्राण त्याग नहीं किए बल्कि सूर्यदेव के उत्तरायण में होने तक इंतजार करते रहे। मकर संक्रांति के पुण्य दिन पर जब सूर्यदेव ने उत्तरायण में प्रवेश किया तब उन्होंने अपने शरीर का त्याग किया।
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