15 अप्रैल 1469 को तलवंडी गांव में कार्तिक पूर्णिमा के दिन श्रीगुरु नानक देव जी ने जन्म लिया। उनके जन्मदिवस के उपलक्ष्य में कार्तिक पूर्णिमा के दिन को प्रकाश पर्व और गुरु पर्व के रूप में मनाया जाता है। श्रीगुरु नानक देव जी के उपदेश जीवन की राह को सुगम बनाने का मार्ग दिखाते हैं। उन्होंने 15वीं शताब्दी में सिख धर्म की स्थापनी की और वह प्रथम गुरु थे। उनके द्वारा दी गई सभी शिक्षाओं को श्री गुरु ग्रंथ साहिब में संकलित किया गया है।
उनका नाम उनकी बड़ी बहन नानकी के नाम पर रखा गया। श्री गुरुनानक देव के जन्म के बाद तलवंडी का नाम ननकाना पड़ा। वर्तमान में यह जगह पाकिस्तान में है। उन्होंने इक ओंकार का संदेश दिया यानी ईश्वर एक है। एक बार पिता ने उन्हें 20 रुपये देकर बाजार से खरा सौदा कर लाने को कहा। उन्होंने उन रुपयों से रास्ते में मिले भूखे साधुओं को भोजन करा दिया और पिता से कहा कि खरा सौदा कर आए हैं। श्री गुरु नानक देव जी ने कहा कि कभी भी किसी का हक नहीं छीनना चाहिए बल्कि मेहनत और ईमानदारी की कमाई में से जरूरतमंदों की मदद करनी चाहिए। उन्होंने अपने साथियों बाला और मर्दाना के साथ कई यात्राएं की। श्री गुरु नानक जी ने मुफ्त रसोई की बात कही जहां सभी लोगों को समान समझा जाए चाहें वह अमीर हो या गरीब। सभी एक जगह साथ बैठकर भोजन करें, बिना किसी भेदभाव के। आज भी इस प्रथा का हर गुरुद्वारा में पालन किया जाता है। सुल्तानपुर लोधी में गुरुद्वारा बेर साहिब वो जगह है जहां श्री गुरुनानक देव जी का ईश्वर से साक्षात्कार हुआ। जब एक बार गुरु नानकदेव जी अपने सखा मर्दाना के साथ वैन नदी के किनारे बैठे थे, तो अचानक उन्होंने नदी में डुबकी लगा दी और तीन दिनों तक लापता हो गए, जहां उनका ईश्वर से साक्षात्कार हुआ। श्री गुरुनानक देव जी ने वहां एक बेर का बीज बोया, जो आज बहुत बड़ा वृक्ष बन चुका है। जीवनभर धार्मिक यात्राओं के बाद श्री गुरुनानक देव जी ने रावी नदी के तट पर डेरा जमाया। 1539 में वह परम ज्योति में विलीन हुए। श्री गुरु नानक देव जी ने मृत्यु से पहले गुरु अंगद को अपने उत्तराधिकारी के रूप में चुना और वह सिखों के दूसरे गुरु बने। बाद में गुरु ग्रंथ साहिब को अंतिम गुरु के रूप में घोषित किया गया।
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