मार्गशीर्ष माह में शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को चंपा षष्ठी का व्रत रखा जाता है। भगवान शिव और भगवान कार्तिकेय को समर्पित इस व्रत को करने से समस्त पाप मिट जाते हैं और कष्ट दूर होते हैं। मनोकामनाएं पूरी होती हैं। भगवान कार्तिकेय ने इस दिन दैत्य तारकासुर का वध किया और इसी तिथि को वह देवताओं की सेना के सेनापति बने। इस कारण इस दिन का विशेष महत्व है। भगवान कार्तिकेय को चम्पा के फूल अधिक प्रिय हैं। इस कारण इस दिन को चंपा षष्ठी कहा जाता है। भगवान कार्तिकेय मंगल ग्रह के स्वामी हैं। मंगल को मजबूत करने के लिए इस दिन भगवान कार्तिकेय का व्रत करना चाहिए।
चंपा षष्ठी पर भगवान शिव के खंडोबा स्वरूप की पूजा की जाती है। किसान भगवान खंडोबा को अपने देवता के रूप में पूजते हैं। इस दिन भगवान शिव के मार्कंडेय स्वरूप की पूजा होती है। पूजा में शिवलिंग पर बाजरा, बैंगन, खांड, फूल, अबीर, बेलपत्र आदि अर्पित किया जाता है। इस दिन भगवान कार्तिकेय की पूजा में चंपा का फूल चढ़ाते हैं। इस व्रत को करने से सुख, शांति और मोक्ष प्राप्त होता है। स्कंदपुराण के अनुसार यह पर्व भगवान कार्तिकेय को समर्पित है। इस पर्व को स्कंद षष्ठी भी कहा जाता है। इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और भगवान शिव का ध्यान करें। शिवलिंग पर दूध और गंगाजल अर्पित करें। फूल, अबीर, बेल पत्र अर्पित करें। देसी खांड का भोग लगाएं। स्कंद षष्ठी के दिन व्रतधारी को दक्षिण दिशा की तरफ मुख कर भगवान कार्तिकेय का पूजन करना चाहिए। घी, दही, जल और पुष्प से अर्घ्य प्रदान करना चाहिए। रात्रि में भूमि पर शयन करना चाहिए। इस दिन तेल का सेवन नहीं करना चाहिए। चंपा षष्ठी का व्रत करने से जीवन में प्रसन्नता बनी रहती है।
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