चैत्र नवरात्रि का दूसरा दिन मां दुर्गा की दूसरी शक्ति मां ब्रह्मचारिणी को समर्पित है। हजारों वर्षों तक कठिन तपस्या के कारण इनका नाम तपश्चारिणी या ब्रह्मचारिणी पड़ा। मां की उपासना निराहार रहकर की जाती है। मां की उपासना से जीवन के कठिन संघर्षों में भी व्यक्ति अपने कर्तव्य से विचलित नहीं होता और सफलता प्राप्त करता है। इस दिन शिक्षा और ज्ञान की प्राप्ति के लिए मां सरस्वती की उपासना करें।
मां ब्रह्मचारिणी ने भगवान शिव को पति स्वरूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तप किया। कठोर तप के कारण उनका नाम ब्रह्मचारिणी या तपश्चारिणी पड़ा। मां का स्वरूप अत्यंत भव्य हैं। इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएं हाथ में कमंडल है। इनकी आराधना से अनंत फल की प्राप्ति होती है। मां की उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम जैसे गुणों की वृद्धि होती हैं। मां ब्रह्मचारिणी की कृपा से सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती हैं। बार-बार मेहनत करने के बाद भी जिनको सफलता नहीं मिलती है उनको मां की पूजा अवश्य करनी चाहिए। मां की उपासना पीले या सफेद वस्त्र पहनकर करनी चाहिए। माता रानी का लाल रंग प्रिय है। इस दिन मां को सफेद वस्तुएं अर्पित करने से भाग्य चमक उठता है। माता को शक्कर या पंचामृत का भोग लगाएं। फूल, अक्षत, कुमकुम, सिंदूर अर्पित करें। कमल, गुलाब, गुड़हल या कोई भी लाल रंग का फूल देवी मां को अर्पित करें। देसी घी का दीपक प्रज्वलित कर ऊंचे स्वर में मां की आरती करें। मां को मिश्री, सफेद मिठाई और पंचामृत का भोग लगाएं। मां अनंत फल प्रदान करने वाली हैं।
इस आलेख में दी गईं जानकारियां लौकिक मान्यताओं और धार्मिक आस्था पर आधारित हैं, इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।