मार्गशीर्ष माह में शुक्ल पक्ष सप्तमी तिथि को मित्र सप्तमी मनाई जाती है। भगवान सूर्यदेव को समर्पित मित्र सप्तमी का त्योहार संपूर्ण भारत में मनाया जाता है। इस दिन भगवान सूर्यदेव की उपासना की जाती है। मित्र, सूर्यदेव के कई नामों में से एक है। सृष्टि में सकारात्मकता के देव सूर्यदेव को प्रत्यक्ष देवता माना जाता है। सूर्योपासना के इस पर्व पर भगवान सूर्यदेव की आराधना करने से नेत्र एवं चर्म रोंगों से मुक्ति मिलती है।
इस व्रत को करने से आत्मविश्वास बढ़ता है और हर कार्य में सफलता मिलती है। इस दिन भगवान सूर्य के नामों का जाप करते हुए पूजा करने का विधान है। इस दिन भगवान सूर्य की आराधना करते हुए गंगा-यमुना या किसी भी पवित्र नदी में स्नान कर सूर्यदेव को जल अर्पित करें। मान्यता है कि जो व्यक्ति मित्र सप्तमी के दिन व्रत करता है तथा अपने पापों की क्षमा मांगता है, भगवान सूर्यदेव उसे नेत्र ज्योति प्रदान करते हैं। इस दिन व्रती भगवान आदित्य का पूजन कर उन्हें जल से अर्घ्य प्रदान करें। पूजा में फल, पकवान एवं मिष्ठान को शामिल करें। इस व्रत को करने से आरोग्य व आयु का वरदान प्राप्त होता है। इस दिन सूर्यदेव की किरणों को अवश्य ग्रहण करना चाहिए। इस व्रत के प्रभाव से घर में धन धान्य में वृद्धि होती है और परिवार में सुख समृद्धि आती है। इस तिथि पर दिनभर व्रत रखकर ब्राह्मणों भोजन कराएं। मित्र सप्तमी पर तांबे के लोटे में जल, चावल और लाल फूल डालकर उगते हुए सूर्यदेव को जल अर्पित करें। जल चढ़ाने के बाद धूप और दीप से सूर्यदेव की पूजा करें। इस दिन पीले या लाल कपड़े, गेहूं, गुड़, लाल चंदन का दान करें। इस दिन व्रत में एक समय फलाहार कर सकते हैं। दिनभर नमक का सेवन न करें।
इस आलेख में दी गई जानकारियों पर हम यह दावा नहीं करते कि यह पूर्णतया सत्य एवं सटीक हैं। इन्हें अपनाने से पहले संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।