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प्रेम और एकजुटता का संदेश देता है उल्लास का यह उत्सव

बसंत ऋतु के आगमन के साथ लोहड़ी का त्योहार मनाया जाता है। इस त्योहार को लेकर कई धार्मिक मान्यताएं हैं। माना जाता है कि संत कबीर की पत्नी लोई की याद में यह पर्व मनाया जाता है। यह भी मान्यता है कि इस दिन सुंदरी-मुंदरी नामक लड़कियों की शादी दुल्ला भट्टी नामक डाकू ने अच्छे लड़कों से कराई थी। माता सती के त्याग के रूप में भी यह त्योहार मनाया जाता है। 

लोहड़ी को पहले तिलोड़ी कहा जाता था जो समय के साथ बदलकर लोहड़ी नाम से जाना जाने लगा। विशेषकर पंजाब और हरियाणा में लोहड़ी का त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है। कई स्थानों पर इस त्योहार को लोही या लोई भी कहा जाता है। लोहड़ी के दिन विशेष पकवान बनाए जाते हैं। गजक, रेवड़ी, मूंगफली, तिल-गुड़ के लड्डू, मक्का की रोटी और सरसों का साग इस त्योहार पर विशेष रूप से प्रयोग किए जाते हैं। जिस घर में नई शादी हुई हो या बच्चे ने जन्म लिया हो उन्हें इस त्योहार पर विशेष तौर पर बधाई दी जाती है। यह त्योहार कृषि से जुड़ा हुआ है। लोहड़ी की अग्नि में नई फसल को अर्पित कर ईश्वर को धन्यवाद दिया जाता है। पूरे वर्ष अच्छी फसल और संपन्नता की प्रार्थना की जाती है। लोहड़ी से कुछ दिन पहले से ही बच्चे लोहड़ी के गीत गाकर घर-घर से लोहड़ी के लिए लकड़ियां एकत्र करने लगते हैं। उत्तर प्रदेश में खिचड़ी और दक्षिण भारत में पोंगल पर्व भी लोहड़ी के त्योहार के आसपास ही मनाए जाते हैं। लोहड़ी में रात्रि में खुले स्थान में परिवार और आसपड़ोस के लोग मिलकर अलाव जलाते हैं और अग्नि के किनारे घेरा बनाकर बैठते हैं। इस त्योहार पर लोग अलाव के चारों ओर एकत्र होकर अग्नि में तिल, गज़क, गुड़, मूंगफली आदि चढ़ाते हैं और लोकगीत गाकर एक-दूसरे को त्योहार की बधाई देते हैं।

इस आलेख में दी गईं जानकारियों पर हम यह दावा नहीं करते कि यह पूर्णतया सत्य एवं सटीक हैं, इन्हें अपनाने से पहले संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर ले लें।