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भय का हरण करने वाले हैं भगवान भैरव, दसों दिशाओं से करते हैं भक्तों की रक्षा

मार्गशीर्ष माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान काल भैरव की जयंती मनाई जाती है। इस तिथि को कालाष्टमी, भैरव अष्टमी भी कहा जाता है। काल भैरव भगवान शिव के रौद्र अवतार माने जाते हैं। भय का हरण करने वाले भगवान भैरव में भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु और भगवान शिव तीनों की शक्ति समाहित हैं। भगवान भैरव, भगवान शिव के गण और माता पार्वती के अनुचर माने जाते हैं। भगवान शिव ने भगवान भैरव को काशी के कोतवाल पद पर प्रतिष्ठित किया है। भैरव बाबा की पूजा-अर्चना करने से परिवार में सुख-शांति, समृद्धि के साथ स्वास्थ्य की रक्षा भी होती है। भगवान भैरव अपने भक्तों की दसों दिशाओं से रक्षा करते हैं। 

भगवान भैरव की आराधना से जीवन में कोई संकट नहीं सताता। कालाष्टमी के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान करें और व्रत का संकल्प लें। इस दिन भगवान शिव के साथ मां दुर्गा की भी उपासना करें। पूर्व दिशा की ओर मुख कर भगवान शिव को लाल चंदन, बेलपत्र, पुष्प, धूप, दीप, मिठाई, फल अर्पित करें। भगवान भैरव की पूजा में उन्हें तिल, उड़द अर्पित करें। भगवान भैरव के प्रिय भोग इमरती, जलेबी, पान, नारियल अर्पित करें। भगवान भैरव की आरती करें। संध्याकाल में भगवान काल भैरव के मंदिर में चौमुखी सरसों के तेल का दीपक लगाकर ऊं कालभैरवाय नम: मंत्र का 108 बार जाप करें। इस दिन काले कुत्ते को मीठी रोटी और गुड़ के पुए खिलाएं। इससे भगवान भैरव प्रसन्न होते हैं। किसी जरूरतमंद की सहायता करें। दान अवश्य करें। इस दिन शमी के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाएं। इससे वैवाहिक जीवन में खुशियां आती हैं। भगवान भैरव की कृपा से अकाल मृत्यु से बचाव होता है। 

इस आलेख में दी गई जानकारियों पर हम यह दावा नहीं करते कि ये पूर्णतया सत्य एवं सटीक हैं। इन्हें अपनाने से पहले संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।