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भाईचारे, मोहब्बत और खुशियाों का त्योहार है ईद-उल-फितर

ईद-उल फितर का त्योहार खुशियां लेकर आता है। रमजान के महीने की आखिरी दिन जब चांद का दीदार होता है तो उसके अगले दिन ईद उल फितर का त्योहार मनाया जाता है। यह त्योहार भाईचारे, सौहार्द्र, मोहब्बत और खुशियों का त्योहार है। इस मौके पर अमीर-गरीब सभी एक सफ में खड़े हो जाते हैं और ईद की नमाज अदा करते हैं। 

रमजान के पूरे महीने रोजे रखने के बाद नया चांद देखने के अवसर पर ईद-उल-फितर का त्योहार मनाया जाता है। ईद उल फितर का त्योहार रमजान माह की समाप्ति पर 29 या 30 रोजे पूरे होने पर चांद दिखाई देने पर मनाया जाता है। ईद का चांद दिखने पर उसके अगले दिन चांद की पहली तारीख को ईद मनाई जाती है। ईद उल फितर से पहले पूरे महीने अल्लाह के बंदे अल्लाह की इबादत करते हैं। रोजे रखते हैं और कुरआन-ए-पाक की तिलावत करते हैं। ईद पर जकात और फितरा की राशि से गरीबों की मदद की जाती है। ईदगाह और मस्जिदों में ईद की नमाज अदा की जाती है। आमतौर पर पुरुष सफेद कपड़े पहनते हैं। सफेद रंग पवित्रता और सादगी का प्रतीक है। माह-ए-रमजान में रोजेदारों ने रोजे रखने, पूरे महीने इबादत करने और गरीबों की मदद करने में कामयाबी पाई, ईद उसका भी जश्न है। इस त्योहार का नाम ईद-उल-फितर इसलिए पड़ा क्योंकि ईद के दिन नमाज से पहले सभी मुस्लिम फितरा अदा करते हैं। जकात भी निकालते हैं। फितरे का अर्थ है निर्धन एवं फकीरों को पैसे की शक्ल में फितरे की रकम देना ताकि गरीब लोग भी ईद की खुशियां मना सकें।

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