नवरात्रि का प्रत्येक दिन देवी मां के विशेष स्वरूप को समर्पित है। नवरात्रि के प्रथम दिन कलश स्थापना करते हुए मां दुर्गा के पहले स्वरूप मां शैलपुत्री की उपासना की जाती है। मां शैलपुत्री देवी पार्वती का ही स्वरूप हैं जो सहज भाव से पूजन करने से शीघ्र प्रसन्न हो जाती हैं और भक्तों को मनोवांछित फल प्रदान करती हैं। मां के भक्तों का मन विपरीत परिस्थितियों में कभी विचलित नहीं होता है।
गौर वर्ण वाली मां शैलपुत्री बैल पर सवार हैं। वह एक हाथ त्रिशूल है तो दूसरे में कमल का फूल धारण करती हैं। चंद्रमा उनके मस्तक की शोभा बढ़ाता है। मां की उपासना से वैवाहिक जीवन में खुशहाली आती है। मां शैलपुत्री की शक्तियां अनन्त हैं। नवरात्र पूजन में प्रथम दिन मां शैलपुत्री की उपासना की जाती है। मां शैलपुत्री की पूजा से मूलाधार चक्र जाग्रत होता है। पर्वतराज हिमालय के घर जन्म लेने के कारण मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप को शैलपुत्री कहा जाता है। मां शैलपुत्री मोक्ष प्रदान करती हैं। कलश स्थापना के बाद मां शैलपुत्री की पूजा करें। उनको अक्षत्, धूप, दीप, फूल, फल, मिठाई, नैवेद्य आदि अर्पित करें। मां शैलपुत्री को कनेर का पुष्प चढ़ाएं और गाय के घी का भोग लगाएं। पार्वती, हेमवती भी उन्हीं के नाम हैं।
इस आलेख में दी गईं जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और मान्यताओं पर आधारित हैं, इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।