दसवें गुरु गोबिंद सिंह जी महान योद्धा, कवि और दार्शनिक थे। उनका जन्म श्री पटना साहिब में गुरु श्री तेग बहादुर जी और माता गुजरी के घर हुआ था। गुरु गोबिंद सिंह जी सिख धर्म के 10वें गुरु हैं। उन्होंने पंच प्यारे और पांच ककार शुरू किए थे।
खालसा पंथ में गुरु जी ने जीवन के पांच सिद्धांत बताए इन्हीं को पांच ककार कहा जाता है। इसे केश, कृपाण, कंघा, कड़ा और कच्छा कहते हैं। हर खालसा सिख को इसका पालन करना अनिवार्य है। गुरु गोबिंद सिंह जी ने ही खालसा वाणी वाहे गुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फतह दिया था।
वह कई भाषाओं को जानने वाले थे। उनकी साहित्यिक विरासत काफी समृद्ध थी। श्री पौंटा साहिब गुरुद्वारे में गुरु गोबिंद सिंह जी ने चार साल व्यतीत किए। इस गुरुद्वारे की स्थापना उन्होंने ही की। उन्होंने दशम ग्रंथ की स्थापना यहीं की थी। गुरु जी का कला-साहित्य के प्रति अगाध प्रेम था। उन्होंने संगीत वाद्ययंत्र दिलरुबा का अविष्कार किया। गुरु जी के दरबार में 52 कवि थे। गुरु गोबिंद सिंह जी को नौ साल की उम्र में गुरु गद्दी पर स्थापित किया गया। सिर्फ 19 साल की उम्र में गुरु जी ने गुरुमुखी, ब्रजभाषा, संस्कृत, फारसी हिंदी और उर्दू जैसी सभी भाषाओं में महारत हासिल कर ली। 1699 में उन्होंने खालसा वाणी का गठन किया, जिसमे सिख धर्म के अनुयायियों को सिंह शीर्षक से नामित किया गया। गुरु गोबिंद सिंह जी अंतिम गुरु थे, उन्होंने गुरु ग्रंथ साहिब जी को उनके बाद गुरु के रूप में स्वीकार करने के लिए कहा। ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ का संपादन श्री गुरु अर्जुन देव जी ने किया था। इसके बाद साल 1705 में गुरु गोविंद सिंह जी ने 116 शब्द जोड़कर इसको पूर्ण किया। उन्होंने अपने समय में 17 रचनाएं लिखी जो ‘दशम ग्रंथ’ का ही हिस्सा हैं।