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वर्षों के तप के बराबर फल प्रदान करता है यह पावन व्रत

वैशाख माह में कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को वरुथिनी एकादशी नाम से जाना जाता है। एकादशी स्वयं विष्णुप्रिया हैं। सभी एकादशियों की तरह यह एकादशी भी भगवान श्री हरि विष्णु को समर्पित है। मान्यता है कि जितना पुण्य कन्यादान और वर्षों तक तप करने पर मिलता है उतना ही पुण्य वरुथिनी एकादशी का व्रत करने से मिलता है। इस व्रत के प्रभाव से मन शांत रहता है। 

एकादशी व्रत में समस्त पापों का शमन करने की शक्ति होती है। इस दिन मन, कर्म, वचन द्वारा किसी भी प्रकार का पाप कर्म करने से बचने का प्रयास करना चाहिए। तामसिक आहार से दूर रहना चाहिए। यह एकादशी दरिद्रता का नाश करने वाली और कष्टों से मुक्ति दिलाने वाली है। इस एकादशी के व्रत के प्रभाव से सौभाग्य प्राप्त होता है। वरुथिनी एकादशी के पहले दिन दशमी तिथि की रात्रि में सात्विक और हल्का भोजन करें। एकादशी पर सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण कर व्रत का संकल्प लें। भगवान श्री हरि विष्णु की विधि विधान से पूजा करें और ॐ नमो भगवते वासुदेवाय का जाप करें। रोली, मोली, पीले चंदन, अक्षत, पीले पुष्प, ऋतुफल, मिष्ठान आदि अर्पित कर धूप-दीप से श्री हरि की आरती कर दीपदान करें। इस दिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना बहुत फलदायी है। तुलसी का पूजन करें। रात्रि में पुन: भगवान श्री हरि विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा तथा अर्चना करें। पूरे दिन श्री हरि का स्मरण करें। रात में भगवान श्री हरि का ध्यान, कीर्तन करते हुए रात्रि जागरण करें। द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन कराने के बाद स्वयं भोजन करें। इस व्रत में खरबूजा का दान करना विशेष फलदायी माना गया है। 

इस आलेख में दी गईं जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।