हिंदू कैलेंडर के अनुसार दसवें माह को पौष मास कहा जाता है। मार्गशीर्ष पूर्णिमा की समाप्ति के साथ इस माह का आरंभ हो जाता है। पौष मास में भगवान सूर्य की उपासना का विशेष महत्व है। इस मास में ही खरमास शुरू हो जाते हैं। जिस कारण सभी तरह के शुभ कार्यों को करने की मनाही होती है। इस माह में कई विशेष व्रत, त्योहार आते हैं।
इस माह संकष्टी चतुर्थी, सफला एकादशी, प्रदोष व्रत, मासिक शिवरात्रि, पौष अमावस्या, पुत्रदा एकादशी, धनु संक्रांति, मासिक शिवरात्रि, पौष पूर्णिमा आदि महत्वपूर्ण व्रत त्योहार आते हैं। पौष मास की पूर्णिमा पर चंद्रमा पुष्य नक्षत्र में रहता है। चंद्रमा के पुष्य नक्षत्र में रहने के कारण इस माह को पौष कहा जाता है। इस माह उत्तम स्वास्थ्य और मान सम्मान की प्राप्ति के लिए भगवान सूर्यनारायण की पूजा का विधान है। इस मास में सुबह स्नान करने के बाद सूर्यदेव को अर्घ्य देना चाहिए। ईसाई धर्म के अनुयायियों के लिए भी पौष यानी दिसंबर माह खास होता है। इस माह क्रिसमस और बड़ा दिन मनाया जाता है। क्रिसमस के दिन प्रभु यीशु का जन्म हुआ। इस माह में सूर्यदेव की उपासना भग नाम से करनी चाहिए। पौष माह को पितरों को मुक्ति दिलाने वाला महीना भी कहा जाता है। मान्यता है कि पौष माह में जिन पूर्वजों का पिंडदान किया जाता है, वे बैकुंठ चले जाते हैं। इस माह में प्रत्येक रविवार व्रत रखने और तिल और चावल की खिचड़ी का भोग लगाने से मनुष्य तेजस्वी बनता है। पौष मास में की गई सूर्य उपासना का फल दोगुना अधिक होता है। इस माह सूर्यदेव की पूजा करने से बुद्धि, विवेक, ऊर्जा और आर्थिक समृद्धि बढ़ती है।
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