शब-ए-बरआत इबादत की रात है। कहा जाता है कि इस रात अल्लाह की रहमतें बरसती हैं। इस्लामिक मान्यता के अनुसार यह रात पूर्व के समय में किए गए कर्मों का लेखा जोखा तैयार करने और आने वाले साल की तकदीर तय करने वाली मानी जाती है। इसलिए इस रात को शब-ए-बरआत के तौर पर जाना जाता है।
शब ए बरआत पर मुस्लिम समाज के लोग पूरी रात इबादत में गुजारने के साथ अपने बुजुर्गों की कब्रों पर जाकर उनकी मगफिरत की दुआ करते हैं। मुस्लिम महिलाएं इस रात घर पर रहकर नमाज पढ़ती हैं, कुरान की तिलावत कर अल्लाह से दुआएं मांगती हैं। मान्यता के अनुसार इस रात अल्लाह अपनी अदालत में पाप और पुण्य का निर्णय लेते हैं और अपने बंदों के किए गए कामों का हिसाब-किताब करते हैं। जो लोग पाप करके जहन्नुम में जी रहे होते हैं, उनको भी इस दिन उनके गुनाहों की माफी देकर जन्नत में भेज दिया जाता है। इस रात को पूरी तरह इबादत में गुजारने की परंपरा है। बरकत वाली इस रात में हर जरूरी और सालभर तक होने वाले काम का फैसला किया जाता है और यह काम फरिश्तों को सौंपा जाता है। मुसलिम समुदाय के लोग शब-ए-बरआत के अगले दिन रोजा भी रखते है। इसके पीछे मान्यता है कि रोजा रखने से इंसान के पिछली शब-ए-बरआत से इस शब-ए-बरआत तक के सभी गुनाहों से माफी मिल जाती है।