मार्गशीर्ष मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को गीता जयंती का पावन पर्व मनाया जाता है। श्रीमद्भगवत गीता को साक्षात भगवान श्रीकृष्ण का स्वरूप माना जाता है। श्रीमद्भागवत गीता को सर्वशास्त्र माना गया है। दुनिया में यही एकमात्र ग्रंथ है जिसकी जयंती मनाई जाती है। श्रीमद्भागवत गीता जीवन जीने की शिक्षा देती है। श्रीमद्भागवत गीता का आरंभ धर्म और अंत कर्म से होता है। गीता में दिए गए ज्ञान से मनुष्य अपने जीवन से अधर्म रूपी अंधकार को दूर कर सकता है।
मान्यता है कि जिस घर में नियमित रूप से श्रीमद्भागवत गीता का पाठ किया जाता है वहां सदैव खुशहाली बनी रहती है। श्रीमद्भागवत गीता का लक्ष्य मनुष्य को कर्तव्य बोध कराना है। गीता में 18 अध्याय हैं और 700 श्लोक हैं। श्रीमद्भागवत गीता ग्रंथ बहुत पवित्र ग्रंथ है। इसे हमेशा पूजा स्थान पर ही रखें। बिना स्नान किए इस ग्रंथ को स्पर्श न करें। गीता पाठ वैसे तो कभी भी किया जा सकता है लेकिन अगर कोई अध्याय शुरू किया है तो उसे बीच में न छोड़ें। इसे समाप्त कर ही आसन से उठें। पाठ शुरू करने से पहले भगवान श्रीगणेश और भगवान श्रीकृष्ण का स्मरण करें। जिस आसन पर रोजाना पाठ करते हैं उसका ही उपयोग करें। दूसरों का आसन नहीं लेना चाहिए। श्रीमद्भागवत गीता में व्यक्ति की हर परेशानी का समाधान छिपा है। इसका पाठ करने से मोक्ष प्राप्त होता है। भगवान श्रीकृष्ण गीता में बताते हैं कि धरती पर हर एक मनुष्य को अपने कर्मों के अनुरूप ही फल प्राप्त होता है। इसलिए कर्मों पर ध्यान देना चाहिए और फल की चिंता नहीं करनी चाहिए। श्रीमद्भागवत गीता में बताया गया है कि मनुष्य को इन्द्रियों पर नियंत्रण रखना चाहिए। जो व्यक्ति अपने मन पर नियंत्रण स्थापित कर लेता है और उसके लिए जय-पराजय, लाभ-हानि, सुख-दुख सब समान होता है। वह व्यक्ति जीवन में सफल हो जाता है। भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि जो व्यक्ति संपूर्ण कामनाओं को त्याग कर अहंकारहित हो जाता है, उसे ही शांति प्राप्त होती है।
इस आलेख में दी गईं जानकारियों पर हम यह दावा नहीं करते कि यह पूर्णतया सत्य एवं सटीक हैं। इन्हें अपनाने से पहले संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।