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समस्त कार्यों को सिद्ध करने वाला माना जाता है यह व्रत

माघ माह में शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को भीष्म द्वादशी कहा जाता है। भीष्म द्वादशी पर भगवान श्रीकृष्ण की पूजा का विधान है। इस द्वादशी को गोविंद द्वादशी भी कहा जाता है। इस तिथि पर व्रत करने से संतान की प्राप्ति, धन-धान्य, सौभाग्य का सुख मिलता है। इस व्रत के प्रभाव से मन में सकरात्मक सोच में वृद्धि होती है। 

महाभारत युद्ध में अर्जुन ने पितामह भीष्म को बाणों की शैय्या पर लेटा दिया था। उस समय सूर्यदेव दक्षिणायन थे। भीष्म पितामह ने सूर्यदेव के उत्तरायण होने का इंतजार करते हुए माघ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन प्राण त्याग दिए थे। इसके तीन दिन बाद द्वादशी तिथि पर भीष्म पितामह के लिए तर्पण और पूजन की परंपरा चली आ रही है। द्वादशी के दिन पिंड दान, पितृ तर्पण, ब्राह्मण भोज तथा दान-पुण्य करना उत्तम फलदायी माना गया है। भीष्म द्वादशी व्रत करने से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यह व्रत रखने से समस्त कार्यों को सिद्ध करने वाला माना गया है। इस व्रत की पूजा एकादशी के उपवास के समान की जाती है। भीष्म द्वादशी के दिन भगवान लक्ष्मीनारायण की पूजा की जाती है। इस दिन पूर्वजों का तर्पण करने का विधान है। इस तिथि पर भीष्म पितामह की पूजा करने से पितृ देव प्रसन्न होते हैं। सुख-सौभाग्य, शांति और समृद्धि प्रदान करते हैं। यह व्रत रोगनाशक माना जाता है। इस दिन तिलों के दान का विशेष महत्व बताया गया है। इस दिन सूर्यदेव की पूजा का भी विशेष महत्व बताया गया है। 

इस आलेख में दी गईं जानकारियों पर हम यह दावा नहीं करते कि यह पूर्णतया सत्य एवं सटीक हैं। इन्हें अपनाने से पहले संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर ले लें।