फाल्गुन मास में शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को गोविंद द्वादशी का पावन व्रत रखा जाता है। इस द्वादशी को भीम द्वादशी भी कहा जाता है। इस व्रत का सर्वप्रथम पालन भीष्म ने किया था, इस कारण इस व्रत का नाम भीष्म द्वादशी व्रत हुआ। यह व्रत एकादशी की भांति पवित्रता व शांत चित से किया जाता है।
यह व्रत भगवान श्री हरि विष्णु को समर्पित है और उनके कृष्ण स्वरूप की पूजा की जाती है। इस व्रत में ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नम: का जाप करते रहें। यह व्रत समस्त कार्य सिद्ध करने वाला माना जाता है। पूर्ण श्रद्धा एवं विश्वास से इस व्रत का पालन करना चाहिए। यह व्रत समस्त रोगों को दूर कर देता है। गोविंद द्वादशी के दिन नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान के पश्चात भगवान लक्ष्मीनारायण की पूजा करें। दूध, शहद, केला, गंगाजल, तुलसी, मेवा मिलाकर पंचामृत से भगवान को भोग लगाएं। द्वादशी कथा का वाचन करना चाहिए। मां लक्ष्मी की स्तुति करें। पूजन के बाद चरणामृत एवं प्रसाद सभी को बांटें। ब्राह्मणों को भोजन कराने के बाद दक्षिणा देनी चाहिए। इसके पश्चात स्वयं भोजन करें। इस व्रत में पूर्वजों का तर्पण करने का भी विधान है। इस व्रत में पवित्रता का विशेष महत्व है। यह व्रत रोगों को नष्ट कर आरोग्य को बढ़ाने वाला है। इस व्रत के प्रभाव से संतान की प्राप्ति होकर धन-धान्य, सौभाग्य का सुख मिलता है। इस व्रत में रात्रि में हरि नाम का संकीर्तन अवश्य करें। इस दिन व्रत रखने से पितृदोष शांत होते हैं तथा किसी प्रकार का धनाभाव नहीं रहता है। पूजा के बाद गोविंद द्वादशी कथा अवश्य सुनें।
इस आलेख में दी गईं जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।