नवरात्रि में अंतिम दिन नवमी को मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। मां सिद्धिदात्री समस्त सिद्धियां प्रदान करने वाली हैं। भगवान शिव ने इनकी कृपा से ही सिद्धियों को प्राप्त किया। मां की कृपा से ही भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ, इसी कारण वह लोक में अर्द्धनारीश्वर नाम से प्रसिद्ध हुए। हिमाचल का नंदा पर्वत इनका प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है। मां की उपासना से अष्ट सिद्धि और नवनिधि, बुद्धि और विवेक की प्राप्ति होती है।
कमल पर विराजमान मां सिद्धिदात्री के हाथों में चक्र, शंख, गदा और कमल सुशोभित है। मां के समक्ष घी का दीपक जलाने के साथ मां सिद्धिदात्री को कमल का फूल अर्पित करना शुभ माना जाता है। नवमी के दिन कन्या पूजन भी किया जाता है। भगवान शिव ने सिद्धि प्राप्ति के लिए मां सिद्धिदात्री की विशेष आराधना की थी। मां सिद्धिदात्री की पूजा के लिए सुबह जल्दी उठकर स्नान करें। इसके बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें। मां के लिए पूजा स्थल तैयार करें इसके बाद चौकी पर मां सिद्धिदात्री की प्रतिमा स्थापित करें। मां सिद्धिदात्री का ध्यान करते हुए भोग लगाएं। माता रानी को फल, फूल आदि अर्पित करें और ज्योत जलाकर मां सिद्धिदात्री की आरती करें। मां की कृपा से सुख-समृद्धि बनी रहती है। मां सिद्धिदात्री को लाल और पीले रंग के अलावा नारियल, खीर, नैवेद्य, पंचामृत भोग के रूप में अर्पित करें। प्रसाद में मां को खीर और नारियल का भोग लगाएं।
इस आलेख में दी गईं जानकारियां धार्मिक आस्था और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।