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सुख-सौभाग्य प्रदान करता है मां जानकी को समर्पित यह पावन व्रत

फाल्गुन माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मां जानकी का प्रकट उत्सव मनाया जाता है। इस दिन माता सीता की पूजा-अर्चना और व्रत करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। इस दिन भगवान श्रीराम और माता सीता की पूजा करने का विशेष महत्व माना गया है। 

सीताष्टमी के दिन प्रातः स्नान आदि से निवृत होकर माता सीता और भगवान श्रीराम के समक्ष व्रत का संकल्प लें। भगवान श्रीगणेश और माता अंबिका की पूजा करें। इसके पश्चात माता सीता और भगवान श्रीराम की पूजा करें। माता सीता को पीले फूल, पीले वस्त्र और सोलह शृंगार की वस्तुएं अर्पित करें। माता सीता को भोग में पीली चीजों का भोग लगाएं। विधिपूर्वक पूजा के बाद मां सीता की आरती करें। दूध और गुड़ से व्यंजन बनाकर प्रसाद चढ़ाएं और वितरित करें। शाम को पुनः पूजन करने के पश्चात दूध और गुड़े से बने व्यंजन से व्रत का पारण करें। यह व्रत करने से वैवाहिक जीवन से जुड़े सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। सुहागन महिलाओं के लिए यह व्रत विशेष महत्व रखता है। विवाहित महिलाओं द्वारा इस व्रत का पालन करने से पति की आयु लंबी होती है। कन्या के विवाह में बाधा आ रही हो तो इस व्रत के प्रभाव से समस्त बाधाएं दूर हो जाती हैं। इस व्रत के प्रभाव से सौभाग्य, सुख और संतान की प्राप्ति होती है। अविवाहित कन्याओं को इस दिन मां सीता को सफेद फूलों का शृंगार और सुहाग की वस्तुएं अर्पित करनी चाहिए। इस दिन भगवान श्रीराम और मां सीता को चरण पादुकाएं अर्पित करने से जीवन के समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं। समाज में मान-सम्मान की प्राप्ति होती है।

इस आलेख में दी गईं जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।