सूर्यदेव शक्ति और ऊर्जा का प्रतीक हैं। श्रद्धा और आस्था का महापर्व छठ भगवान सूर्य को समर्पित है। चार दिनों तक चलने वाले इस महापर्व पर व्रत, धार्मिक अनुष्ठान और मांगलिक कार्य किए जाते हैं। इस महापर्व पर भगवान सूर्य के साथ षष्ठी मैया की पूजा-अर्चना करने से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
इस पर्व में 36 घंटे का निर्जला व्रत रखा जाता है। सुख-सौभाग्य, समृद्धि, संतान और सुखी जीवन की कामना के लिए छठ पूजा की जाती है। छठ पर्व की शुरुआत नहाय खाय के साथ होती है। इसके बाद खरना, अर्घ्य और पारण किया जाता है। यह ऐसा पर्व है जिसमें न केवल उगते सूर्य बल्कि अस्त होते सूर्य को भी अर्घ्य दिया जाता है। उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के बाद ही इस पर्व का समापन होता है। छठ व्रत से घर में सुख-शांति आती है। इस व्रत से संतान और सुहाग की आयु लंबी होती है। छठ पर्व के दूसरे दिन खरना के अवसर पर व्रती सुबह से निर्जला व्रत रखकर शाम को मिट्टी के चूल्हे पर गुड़ और चावल की खीर बनाती हैं। खीर के साथ रोटी भी बनती हैं। रोटी और खीर के साथ मौसमी फल केला जरूर शामिल किया जाता है। मिठाई के साथ एक केले के पत्ते पर रखकर छठ माता को प्रसाद अर्पित किया जाता है। यह प्रसाद चूल्हे पर आम की लकड़ियों को जलाकर ही बनाया जाता है। जो प्रसाद बनता है, उसे नए चूल्हे पर बनाया जाता है। षष्ठी तिथि को छठ पर्व का मुख्य पूजा की जाती है। इस दिन प्रातः सूर्योदय के समय नदी या तालाब पर जाकर अर्घ्य दिया जाता है और छठी मईया का पूजन किया जाता है। व्रती पूरे दिन कठिन निर्जला उपवास करते हैं। शाम के समय पुनः नदी पर जाकर पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। चौथा दिन यानी सप्तमी तिथि छठ महापर्व का अंतिम दिन होता है। सप्तमी को प्रातः उगते सूर्य को जल दिया जाता है। इसी के साथ छठ पर्व का समापन होता है।
इस आलेख में दी गई जानकारियों पर हम यह दावा नहीं करते कि ये पूर्णतया सत्य एवं सटीक हैं। इन्हें अपनाने से पहले संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।