चैत्र माह में कृष्ण पक्ष की एकादशी को पापांक्षय या पापमोचनी एकादशी कहा जाता है। सभी पापों से मुक्त करने वाली यह एकादशी मोक्ष प्रदान करने वाली है। मान्यता है कि पापांक्षय एकादशी का व्रत करने से मातृ और पितृपक्ष के दस-दस पितरों को विष्णु लोक की प्राप्ति होती है। एकादशी का व्रत नियम और निष्ठा के साथ करने से मन पवित्र होता है। यह व्रत सुख, सौभाग्य में कमी नहीं होने देता है। एकादशी व्रत रखने से व्रती को उत्तम स्वास्थ्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
एकादशी व्रत का पालन दशमी तिथि से ही किया जाता है। दशमी और एकादशी दोनों दिनों में मौन व्रत का पालन करें। दशमी तिथि पर गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर की दाल का सेवन नहीं करना चाहिए। इस व्रत में श्रीमद्भागवद् का पाठ करें और भजन-कीर्तन में समय व्यतीत करें। इस व्रत में संकल्प लेने के पश्चात घट स्थापना करें। कलश पर भगवान श्री हरि विष्णु की मूर्ति रखकर पूजा करें। श्री विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। द्वादशी तिथि पर ब्राह्मणों को भोजन कराएं और अन्न का दान करें। महाभारत काल में भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को इस एकादशी का महत्व बताया था। इस व्रत के प्रभाव से मन शुद्ध होता है और सदगुणों का विकास होता है। एकादशी व्रत में सिर्फ फलाहार करें, इससे शरीर स्वस्थ और मन प्रफुल्लित रहता है। इस व्रत के प्रभाव से मन शुद्ध होता है और सदगुणों का विकास होता है।
इस आलेख में दी गईं जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं। सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर इसे प्रस्तुत किया गया है।