मार्गशीर्ष मास की तृतीया तिथि को माता पार्वती और भगवान शिव को समर्पित सौभाग्य सुंदरी व्रत किया जाता है। सौभाग्य का अर्थ है भौतिक सुख, ऐश्वर्य, समृद्धि और सौंदर्य से तात्पर्य तन के साथ मन की सुंदरता। कहते हैं कि इस व्रत के प्रभाव से यह दोनों प्राप्त होते हैं। करवाचौथ के समान इस व्रत को महिलाओं के लिए अखंड वरदान के रूप में जाना जाता है।
इस व्रत को विधि विधान से करने से माता पार्वती प्रसन्न होती हैं। व्रती महिलाएं माता पार्वती पूजा करती हैं और सदा सुहागन रहने की कामना करती हैं। इस दिन सुबह उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। सबसे पहले भगवान श्रीगणेश की उपासना करें। नौ ग्रहों की पूजा के बाद भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करें। माता पार्वती को 16 शृंगार की वस्तुएं अर्पित करें। माता पार्वती को रोली, कुमकुम, चावल के साथ सुपारी अर्पित करें। शिव परिवार की पूजा करें। पूजा के पश्चात दान अवश्य करें। समस्त पूजा अनुष्ठान पूरा करने के बाद व्रत संपन्न होता है। इस व्रत का का पालन करने से सभी तरह के दोष दूर हो जाते हैं। विवाहित महिलाएं इस दिन सोलह शृंगार करती हैं। मां पार्वती को सौभाग्य की समस्त वस्तुओं को अर्पित किया जाता है। इस व्रत के प्रभाव से सौभाग्य की प्राप्ति होती है। अविवाहित कन्याएं भी इस व्रत को कर सकती हैं। इस व्रत को विवाह दोष से मुक्त होने और विवाह में देरी को दूर करने के लिए भी रखा जाता है। इस व्रत के प्रभाव से मांगलिक दोष के साथ विवाह में आ रही बाधाओं से मुक्ति मिल जाती है। जिनकी कुंडली में मांगलिक दोष होता है और शादी में परेशानियां आती हैं उन्हें यह व्रत अवश्य करना चाहिए।
इस आलेख में दी गई जानकारियों पर हम यह दावा नहीं करते कि ये पूर्णतया सत्य एवं सटीक हैं। इन्हें अपनाने से पहले संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।