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स्मरण करने मात्र से प्रसन्न हो जाते हैं भगवान दत्तात्रेय, कहलाते हैं स्मृतिगामी

भगवान दत्तात्रेय को भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु तथा भगवान महेश का अवतार माना जाता है। मार्गशीर्ष माह में पूर्णिमा के दिन दत्त जयंती का त्योहार मनाया जाता है। भगवान दत्तात्रेय भक्त वत्सल हैं। भक्तों द्वारा स्मरण करने मात्र से ही वह प्रसन्न हो जाते हैं। इसलिए उन्हें स्मृतिगामी भी कहा जाता है। मार्गशीर्ष माह में पूर्णिमा के दिन शाम को मृग नक्षत्र में भगवान दत्त का जन्म हुआ, इसलिए इस दिन दत्त जयंती मनाई जाती है। दत्त जयंती के दिन दत्त तत्व सामान्य से 1000 गुना अधिक पृथ्वी पर कार्यरत रहता है। 

भगवान दत्तात्रेय ऋषि अत्रि और माता अनसूया के पुत्र हैं। मां अनसूया को पतिव्रता स्त्रियों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। वनवास के समय माता सीता ने भी माता अनसूया का आशीर्वाद ग्रहण किया। इस दिन भगवान दत्तात्रेय का जन्मोत्सव सर्व दत्तक्षेत्रों में मनाया जाता है। इस अवसर पर यज्ञ का आयोजन किया जाता है। दत्त जयंती के अवसर पर भक्त गुरुचरित्र का पाठ करते हैं। दत्तगुरु ने चराचर में प्रत्येक वस्तु में ईश्वर के अस्तित्व को देखने के लिए चौबीस गुरु बनाए। दत्तगुरु ने पृथ्वी को अपना गुरु बनाया और पृथ्वी से सहिष्णु और सहनशील होना सीखा। दक्षिण भारत में दत्त संप्रदाय के लोग, भगवान दत्तात्रेय को ही अपना प्रमुख आराध्य मानते हैं। दत्त जयंती पर भक्त गुरुचरित्र का पाठ करते हैं। इस त्योहार से पहले सात दिनों तक गुरुचरित्र का पाठ करने की प्रथा है। इसे गुरुचरित्र सप्ताह कहा जाता है। ‘श्रीदत्तात्रेय कवच’ का पठन करने के साथ दत्त नाम का जप करना विद्यार्थियों के लिए विशेष रूप से लाभकारी माना जाता है। दत्त जयंती पर भजन कीर्तन में ताल, मृदंग जैसे सात्विक वाद्य यंत्रों का प्रयोग करें और भगवान दत्तात्रेय का स्मरण करते रहें। 

इस आलेख में दी गईं जानकारियों पर हम यह दावा नहीं करते कि यह पूर्णतया सत्य एवं सटीक हैं। इन्हें अपनाने से पहले संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।