कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी व्रत किया जाता है। यह व्रत भगवान भोलेनाथ के स्वरूप भगवान भैरव को समर्पित है। इस दिन भगवान भैरव की उपासना की जाती है। भगवान भैरव की कृपा से अकाल मृत्यु का भय मिटता है। नकारात्मक शक्तियां दूर होती हैं। भगवान भैरव पराक्रम और साहस का प्रतीक हैं। इस व्रत के प्रभाव से हर प्रकार के भय से मुक्ति मिलती है। नकारात्मकता दूर हो जाती है।
कालाष्टमी के दिन भगवान भैरव का स्मरण करते हुए शमी का पौधा लगाएं। इस दिन सुबह किसी पवित्र नदी या सरोवर में स्नान करने के बाद पितरों का तर्पण करें। कालाष्टमी के दिन भगवान भैरव के साथ पितरों की भी पूजा करें। शिव चालीसा का पाठ करें। इस दिन मां दुर्गा की भी उपासना की जाती है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा का विधान है। इस दिन भैरव मंदिर में जाकर सरसों के तेल का दीपक जलाएं। जरूरतमंदों की मदद करें। झूठ न बोलें और किसी का अपमान न करें। रात में सरसों के तेल का दीपक जलाएं। काल भैरव की सवारी काले कुत्ते को रोटी खिलाएं। भगवान भैरव को चमेली का तेल और सिंदूर अर्पित करें। गुलाब की अगरबत्ती से धूप करें, गुलाबी फूल चढ़ाएं, अबीर और इत्र चढ़ाएं। भगवान भैरव को मीठे चावल का भोग लगाएं। भैरव चालीसा का पाठ करें। इस व्रत में आधी रात में शंख, नगाड़े और घंटे बजाकर भैरव बाबा की आरती करें।
इस आलेख में दी गईं जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।