नवरात्र के सातवें दिन मां कालरात्रि की उपासना का विधान है। मां की उपासना से सभी तरह की नकारात्मक शक्तियों का विनाश होता है। माता के भक्तों को किसी प्रकार से भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है। माता अपने भक्तों को सदैव शुभ फल का आशीर्वाद देने वाली हैं। माता का एक नाम शुभंकारी भी है।
मां कालरात्रि को अज्ञानता को नष्ट करने और ब्रह्मांड से अंधकार को दूर करने के लिए जाना जाता है। मां ने दैत्यों का संहार करने के लिए अपनी त्वचा के रंग का त्याग किया। मां कालरात्रि की उपासना के लिए सबसे उपयुक्त समय मध्य रात्रि में होता है। मां कालरात्रि का प्रिय रंग नारंगी है, जो तेज, ज्ञान और शांति का प्रतीक है। माता की साधना के लिए मन, वचन, काया की पवित्रता का पालन करना अत्यंत आवश्यक है। मां की उपासना एकाग्रचित होकर करनी चाहिए। माता के उपासकों को अग्नि, जल, जीव, जंतु, शत्रु का भय कभी नहीं सताता। मां की कृपा से साधक भयमुक्त हो जाता है। माता की आराधना से तेज व मनोबल बढ़ता है। मां को रोली कुमकुम लगाकर, मिष्ठान, पंच मेवा, फल अर्पित करें। माता की साधना के लिए मन, वचन, काया की पवित्रता का पालन करना अत्यंत आवश्यक है। सिद्धकुंजिका स्तोत्र, अर्गला स्तोत्रम का पाठ करें। मां कालरात्रि को गुड़ व हलवे का भोग लगाएं।
इस आलेख में दी गईं जानकारियां धार्मिक आस्था और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।