चैत्र मास में कृष्ण पक्ष की सप्तमी को शीतला सप्तमी का त्योहार मनाया जाता है। शीतला सप्तमी पर शीतला माता की पूजा की जाती है। माता शीतला बच्चों की गंभीर बीमारियों से रक्षा करती हैं। इस व्रत को करने से आरोग्य का वरदान मिलता है। इस त्योहार को बासौड़ा भी कहा जाता है। माता शीतला को पथवारी भी कहते हैं। मां अपने भक्तों को सुरक्षित रख पथभ्रष्ट होने से बचाती हैं।
मान्यता है कि मां शीतला के पूजन व व्रत से व्यक्ति वर्षभर चर्म रोग और चेचक जैसी बीमारियों से मुक्त रहता है। शीतला अष्टमी का पर्व ऋतु परिवर्तन का संकेत देता है। इस दिन घर में चूल्हा नहीं जलता है। इस त्योहार पर मां शीतला को बासी भोजन का भोग लगाया जाता है और स्वस्थ रहने की कामना की जाती है। यह व्रत होली के ठीक सात दिन बाद रखा जाता है। यह व्रत माताएं बच्चों के बेहतर स्वास्थ्य और दीर्घायु की कामना के लिए रखती हैं। माताएं गुलगुले बनाती हैं। इस त्योहार पर सप्तमी की रात भोजन तैयार कर लिया जाता है और अगले दिन देवी मां को भोग लगाने के बाद ही ग्रहण किया जाता है। माता शीतला की उपासना से बच्चों की बुखार, खसरा, चेचक, आंखों के रोग से रक्षा होती है। मां शीतला का वास वट वृक्ष में माना जाता है, इस दिन वट पूजन भी किया जाता है। शीतला सप्तमी के दिन व्रती प्रातः कर्मों से निवृत्त होकर स्वच्छ व शीतल जल से स्नान करें। माता शीतला को जल अर्पित करें और उसकी कुछ बूंदें अपने ऊपर भी डालें। इस जल को घर के सभी सदस्य आंखों पर लगाएं। थोड़ा जल घर के हर हिस्से में छिड़कना चाहिए। इससे घर की शुद्धि होती है।
इस आलेख में दी गईं जानकारियां धार्मिक आस्थाओं एवं लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।