Ahoi Ashtami Vrat: अहोई अष्टमी कार्तिक मास की कृष्ण अष्टमी को मनाई जाती है। यह दिन अत्यधिक महत्व रखता है क्योंकि माताएं पार्वती मां के स्वरूप अहोई देवी का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए विशेष अनुष्ठान, उपवास और प्रार्थना करती हैं। अहोई माता अनहोनी को टालकर संतान को दीर्घायु प्रदान करती हैं और घर में सुख समृद्धि लाती हैं।
अहोई अष्टमी का व्रत करवा चौथ के 4 दिन बाद रखा जाता है, इसलिए 5 नवंबर को माताएं यह व्रत करेंगी और तारों के उदय होने के बाद उन्हें अर्घ्य देकर व्रत तोड़ेंगी। ज्योतिष अशोक वार्ष्णेय ने बताया कि कार्तिक मास, कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 5 नवंबर को सर्वार्थ सिद्धि, रवि पुष्य योग में अहोई अष्टमी का व्रत किया जायेगा। 4 नवंबर को रात 1 बजे से अष्टमी तिथि शुरू होकर रविवार, 5 नवम्बर की रात 3:20 बजे तक रहेगी। बेहद शुभ फलदायक पुष्य नक्षत्र दिन में 10:27 बजे तक रहेगा। इसके बाद श्रीवत्स, शुभ योग बन रहे हैं, जो व्रत का पालन करने वालों के लिए बहुत ही शुभ है। ज्योतिष ने बताया कि पूजा का मुहूर्त शाम 5:33 बजे से शाम 7 बजे तक रहेगा।
अहोई अष्टमी व्रत नियम
1. अहोई अष्टमी पूजन की शुरुआत गणेश वंदना से की जाती है। किसी भी पूजा-पाठ को शुरू करने से पहले गणेश जी की आराधना की जाती है।
2. अहोई अष्टमी पूजा 7 प्रकार के अनाज के बिना अधूरी मानी जाती है। इसलिए 7 तरह के अनाज को हाथ में पूजा के दौरान रखें। फिर पूजा की समाप्ति के बाद अनाज को गए को खिला दें।
3. अहोई माता को आठ कोनों वाली तस्वीर की पूजा शुभ मानी जाती है।
4. अहोई अष्टमी की पूजा प्रदोष काल में करने की मान्यता है। इसलिए अहोई देवी की पूजा संध्या काल में शुभ मुहूर्त में ही करें।
5. अहोई अष्टमी पर भूलकर भी तामसिक भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए। चाहे व्रती महिला हो या घर का कोई अन्य सदस्य इस दिन किसी को भी तामसिक भोजन नहीं करना चाहिए।
6. मान्यताओं के अनुसार, अहोई अष्टमी व्रत का पारण तारों को देखने के बाद ही किया जाता है। वहीं, तारों को देखने का समय 5 बजकर 58 मिनट, 5 नवंबर है।
डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारियों पर हम यह दावा नहीं करते कि ये पूर्णतया सत्य एवं सटीक हैं। विस्तृत और अधिक जानकारी के लिए संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।